नई दिल्ली । दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल इन दिनों मोदी सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के खिलाफ विपक्षी नेताओं को लामबंद करने में जुटे हुए हैं। केजरीवाल अब तक कई विरोधी दलों का समर्थन जुटा चुके हैं। बताया जा रहा है कि केजरीवाल चाहते हैं कि केंद्र द्वारा लाए अध्यादेश के राज्यसभा में निरस्त करवा दिया जाए, जिससे वह कानून का रूप नहीं ले सकेगा। इसके बाद फिर से दिल्ली के बॉस बन जाएंगे और इसके लिए वह बीते 15 दिनों से कड़ी मशक्कत करते हुए नजर आ रहे हैं। 
केजरीवाल अब तक जेडीयू, आरजेडी, टीएमसी, शिवसेना (यूबीटी), एनसीपी, बीआरएस और सीपीआई (एम) के साथ-साथ द्रविड मुनेत्र कड़गम (डीएमके) ने अध्यादेश के खिलाफ उनका साथ देने का वादा किया है। वहीं, केजरीवाल ने तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन के साथ साझा प्रेस वार्ता कर कहा कि हमने दिल्ली सरकार के खिलाफ केंद्र के अध्यादेश पर चर्चा की। यह अलोकतांत्रिक और असंवैधानिक है। मुख्यमंत्री स्टालिन ने आश्वासन दिया है कि डीएमके आप और दिल्ली के लोगों के साथ खड़ी रहेगी।
विपक्षी दलों को लामबंद करने की कड़ी में केजरीवाल ने कई दलों के नेताओं से मुलाकात की है और दलों के नेताओं ने केजरीवाल का साथ देने का वादा भी कर दिया है, लेकिन अभी तक कांग्रेस ने अपने पत्ते नहीं खोले हैं। साथ ही केजरीवाल ने इसी मुद्दे पर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और राहुल गांधी से भी मिलने का समय मांगा है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने दिल्ली सरकार और केंद्र की लड़ाई का फैसला 11 मई को आम आदमी पार्टी सरकार के पक्ष में दिया था। कोर्ट के फैसले के बाद राष्ट्रीय राजधानी के अफसरों का नियंत्रण केजरीवाल सरकार के हाथ आ गई थी।  सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने कहा कि सेवाओं से जुड़े विभाग के मामलों पर विधायी और कार्यकारी शक्तियां दिल्ली की निर्वाचित सरकार के पास हैं। जबकि भूमि, पुलिस और सार्वजनिक व्यवस्था से संबंधित मामले पूर्व की तरह उपराज्यपाल के अधिकार क्षेत्र में ही रहने वाले हैं।